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Monday, December 22, 2008

टोटका-सुबह पहली चाय को सड़क पर ढोलने का

अक्सर बडे सबेरे सैर पर जाने का प्रयत्न करता हूँ , रोज एक ही रास्ते पर जाने की अपेक्षा अपने शहर के नये-नये रास्तों पर जाता हूँ ऐसा करने से सभी रास्तों पर होने वाले विभिन्न परिवर्तनों से स्वयं को अपडेट कर लेता हूँ।

इसी क्रम में एक बार मैं सुबह जब सैर के लिये जा रहा था मैंने देखा, चौराहे पर चाय का छोटा ठेला लगाने वाले एक व्यक्ति ने एक बडी तपेली भरकर चाय बनाई उसके ठेले के पास कुछ ग्राहक चाय का इंतजार कर रहे थे। सबको उस गुलाबी ठंड में कब चाय मिलेगी इस बात को ले कर बेसब्री थी ऐसे में उस ठेले वाले ने चाय बनाने के बाद पहली एक गिलास चाय और एक गिलास पानी को सड़क के बीचो-बीच ला कर ढोल दिया। उसके बाद उसने बाकी के गिलासों में चाय भरी और फिर ग्राहकों को देना शुरू कर दिया।

यह दृश्य देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने इसका कारण उससे जानना चाहा तब उसने बताया यह हमारे लिये लिये एक टोटके जैसा है अगर हम पहली एक गिलास चाय सड़क पर ढोल भी देते हैं तो क्या फर्क पड़ता है। मैंने उसे समझाने का प्रयत्न करते हुए कहा - भाई , इसकी जगह पर पहली चाय किसी गरीब को पिला दिया करो। बिना पैसे लिये। कम से कम वो दुआ देगा। इस प्रकार सड़क पर चाय ढोलने से तो वो चाय किसी की भी नहीं रही।

ना बाबुजी वो टोटका है-उसने कहा।

मैंने कहा- कैसा टोटका

हमारी और से भूमि को दिया जाता है-उसने कहा।

मैंने कहा - वो अन्न है वो हमारे अन्धविश्वास के चक्कर में किसी और के पैरों में आता है ऐसा करना ठीक नहीं है ऐसा करने से पुण्य मिलेगा या नहीं ये तो नहीं पता लेकिन पाप जरूर लगेगा। अगर ऐसा करना जरूरी ही है तो कम से कम सड़क के बीचों-बीच चाय को न डालते हुए किसी कोने में डाल दो, वो भी तो भूमि का ही हिस्सा है।

लेकिन उसने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

किसी ने ठीक ही कहा है इस देश में इंसान तो क्या पत्थर भी यहाँ पुजे जाते हैं...........

Monday, December 15, 2008

कम्प्यूटर हम्माल चाहिये?

पिछले कई वर्षों से कम्प्यूटर मेरे कार्य क्षेत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है इसी कारण अपने शहर के लगभग सभी बडे उद्योगपतियों, व्यवसायियों, बैंक कर्मियों, शासकीय अधिकारीयों के अलावा विधार्थियों, प्रोग्रामिंग करने वालों, कम्प्यूटर आपरेटर और विभिन्न प्रकार से कम्प्यूटर क्षेत्र से जुडे कार्य करने वाले साथियों से परिचित हूँ । चूँकि जमाना टेक्नोलॉजी का ही है इसलिये यह परिचय का दायरा बढ़ता ही चला जा रहा है। जितना संभव हो सभी को व्यावसायिक मदद देता, लेता रहता हूँ । इसमें मेरा भी जीवन यापन सरल हो जाता है।

इसी सन्दर्भ में एक प्रसंग

कुछ वर्षों पहले एक उद्योगपति से दूरभाष पर हुई चर्चा के अंश –

उद्योगपति - हमारे कार्यालय में एक कम्प्यूटर आपरेटर की आवश्कता है। क्या आप अपने किसी विद्यार्थी या एक कम्प्यूटर आपरेटर की व्यवस्था कर सकते हैं?
मैंने कहा - बिलकुल कर सकते हैं पर आप किस प्रकार के कार्य में आपरेटर की मदद चाहते हैं विस्तार से बताइए? ताकि उचित व्यक्ति को आपके पास भेज सकूँ।

उद्योगपति - वैसे तो सामान्य रूप से एक उद्योग में जो कार्य होता है ........जैसे .....कार्यालय का हिसाब-किताब और पत्र-व्यवहार वगेरह........ और हाँ ग्रेजुएट हो..........अगर अनुभव हो तो और अच्छा रहेगा।
मैंने कहा - ठीक है कार्य स्थल, कार्यालयीन समय और वेतन वगैरह के बारे में क्या रहेगा?

उद्योगपति - भई मेरा आफिस तो इंडस्ट्रीयल एरिया में है और रही बात आफिस टाइम की तो सुबह 8:30-9 बजे तक आ जावे, हमारे यहाँ जाने का कोई फिक्स टाइम नहीं होता ........... और वेतन का ऐसा है कि पिछले आपरेटर को तो मैं ............. रू 1800-2000 देता था पर आदमी अच्छा हो तो थोडा बढ़ा भी सकते हैं। पर उसके पास स्वयं का मोबाइल और गाडी जरूर हो।
मैंने पूछा - वो क्यों?
उद्योगपति - भई कभी-कभी कम्प्यूटर पर ज्यादा काम नहीं होता है तब बैंक से संबंधित या अन्य लोकल काम भी उसे देखना पड सकता है। उसे पेट्रोल का पैसा अलग से देंगे।
मैंने पूछा - कुछ और सुविधाएं भी बता सकें तो मैं उसे ठीक से कनविंस कर सकूँगा।
उद्योगपति - हाँ..... उसे हम रविवार को आधे दिन की छुट्टी देंगे।

मैंने कहा - इसके अलावा और कोई कार्य-अपेक्षा होगी?
उद्योगपति - आल राउंडर हो।
मैंने कहा - मतलब आपको कम्प्यूटर आपरेटर नहीं ........बल्कि कम्प्यूटर हम्माल चाहिये?
उद्योगपति - क्या मतलब? (आवाज में थोडा रूखा पन आ गया था)
मैंने कहा - एक अशिक्षित मजदूर भी आजकल कम से कम 150रू रोज कमा लेता है जबकि उसका कोई अन्य इनवेस्टमेंट नहीं होता। आप को अनुभवी, पढ़ा-लिखा भी चाहिए, जो संपूर्ण आफिस का हिसाब-किताब भी देखे, कम्प्यूटर के साथ अन्य कार्य भी देखे, समय भी भरपूर दे, फिर उससे अनजाने में आप एक मोबाइल और गाडी का इनवेस्टमेंट भी करा रहे हैं और वो भी बिना ब्याज का? और फिर आप कह रहें हैं कि उसे आप थोडा बढ़ा कर देंगे। तो इस वेतन में तो कोई मजबूर ही मिल सकेगा।
उद्योगपति - आप ऐसा समझ सकते हैं? मेरे आफिस में दिन में दस-दस आदमी चक्कर लगाते हैं
मैंने कहा - तो फिर उसी में से किसी का चुनाव कर लें।
उद्योगपति - ( व्यंगात्मक तरीके से हंसते हुए ) तो फिर आप बताइए कि कितना वेतन होना चाहिये?
मैंने कहा - आप स्थायी नौकरी देने से तो रहे, ना आप कोई पेंशन या रिटायरमेंट बेनिफिट देंगे। तो फिर वर्तमान तनख्वाह कम से कम दस हजार रूपये तो हो। आजकल आप अपना स्वयं का परिवार रू2000 में चला सकते हैं क्या?
उद्योगपति - अरे यार.......... पेंडसे साहब .......... यो सब तो आप सरकार ने पूछो? आप के पास कोई आदमी हो तो भिजवाना। .......... कहकर उन्होंने फोन रख दिया।

एक नौजवान व्यक्ति जो ग्रेजुएट हो और कम्प्यूटर प्रशिक्षण के लिये उसने कोई पॉँच-पच्चीस हजार खर्च किये हों। अपनी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा वो इस प्रकार से आपको दे देगा। तो अपेक्षा भी रखेगा। खैर उस उद्योगपति को आज तक उचित व्यक्ति की तलाश है।
क्या भविष्य में उस उद्योगपति को कोई कम्प्यूटर हम्माल मिल सकेगा?

Friday, December 12, 2008

चाय वाला लड़का

बात लगभग एक दशक पहले की है, रतलाम के दो बत्ती स्थित अपने छोटे से प्रशिक्षण संस्थान में एक दिन रतलाम कालेज के एक व्याख्याता अपनी व्याख्याता पत्नी के साथ किसी महत्वपूर्ण कार्य के सन्दर्भ में, मुझसे मिलने के लिये आये। कार्य के बारे में उनसे चर्चा के पश्चात्, मैंने उनसे चाय पीने का आग्रह करते हुए, पास ही स्थित एक चाय की दुकान पर चाय लाने का आदेश दिया।
कुछ की क्षणों पश्चात् एक लडका अत्यंत दयनीय हालत में चाय के गिलास लेकर उपस्थित हुआ। उसका शर्ट फटा हुआ था उसकी पेंट भी बुरी तरह से फटी हुई थी बल्कि वह चीथड़े लपेट कर आया था कहना ज्यादा ठीक होगा, अत्यंत बेतरतीब गंदे व लंबे बाल, नाखूनों में काला-काला मैल, नंगे पैर, उसे नहा कर लगभग एक-आध महिना तो निश्चित ही हुआ होगा, इस प्रकार का स्वरूप लिये उस लडके ने वहां आकर चाय के गिलास हमारे सामने टेबल पर रख दिये।
मेरे साथ उस कमरे में बैठे सभी लोगों का ध्यान बरबस ही इस घटना की और चला गया। एक क्षण विशेष के लिये मुझे काटो तो खून नहीं वाली स्थिति का सामना करना पडा। मेरे छोटे से आफिस का तथाकथित डेकोरम धडाम से नीचे गिर गया था। मुझे ऐसा लगा आज क्यों मैंने चाय के लिये इस दुकान पर आदेश दिया? पर अब तक जो होना था वह तो हो चुका था।
जैसे तैसे हम सभी ने चुपचाप अपनी-अपनी चाय खत्म की। मेरी स्थिति को समते हुए बिना किसी और बात को आगे बढाये मुझे और शर्मिंदा होने से बचाने के लिये प्रोफेसर साहब अपनी पत्नी के साथ वहां से विदा हो गये।
उनके जाने के पश्चात् मैंने तुरंत उस होटल मालिक के पास जाकर उसे समझाया की अब भविष्य में इस प्रकार से चाय मत भेजना। अन्यथा तुम्हारे होटल की चाय बिकना बंद हो जावेगी। होटल मालिक ने मुझसे कहा आप बिलकुल ठीक कहते हैं परंतु मेरे यहाँ हर सप्ताह नया नौकर आ जाता है इन्हें कैसे समझाया जावे। फिर भी होटल मालिक और उस लडके को ग्राहक के सामने चाय को कैसे पेश किया जावे उसके प्रस्तुतिकरण का तरीका समझाया।
होटल मालिक से बातचीत के दौरान मुझे ज्ञात हुआ की ये लडके लगभग 50 रूपये रोज में मिल जाते हैं उन्हें दिन में तीन बार नाश्ता और चार- पॉँच बार चाय मुफ्त में मिल जाती है रात को दुकान के बाहरी ओटले पर सोने को मिल जाता है बस उसमें ये खुश हो जाते हैं।
उसी दिन दोपहर के भोजन के पश्चात् अपने घर से लौटते समय एक जोडी पुराने कपडे लाकर उस लडके को दिये। उस लडके को पास ही एक नाई की दुकान पर ले जाकर जेंटलमैन बनाया। वहीं की एक किराना दुकान से साबुन और एक कंघी दिलवाकर उसे एक सार्वजानिक नल पर नहाने भेजा।
शाम तक सफेद रंग का फ्री साइज़ का एक लंबा एप्रन सिलवाकर होटल के मालिक को यह कहते हुए दिया कि जब भी लडके को आस-पास चाय देने भेजो तो उसे कम से कम यह एप्रन जरूर पहना देना। इतना कह कर मैं अपने प्रशिक्षण संस्थान लौट आया।
अगले दिन मैं सुवह की कक्षाएं लेने के पश्चात् सामने बरामदे में बैठकर अखबार पढ़ रहा था तभी वह लडका बिना आर्डर के एक चाय लेकर मेरे पास आया और बोला लीजिये आपकी चाय। मैंने उसकी ओर देखा वही लडका, नहाने के बाद एप्रन पहन कर, बडा स्मार्ट सा बन कर मेरे लिये चाय लेकर आया था। मैंने कहा भाई मैंने तो चाय का आर्डर ही नहीं दिया था?
उस लडके ने कहा तो क्या हुआ सुबह चाय तो पी सकते हैं। मैंने सोचा चलो ठीक है अब ये ले ही आया है तो पी लेते हैं चाय की चुस्कियों के साथ मैं भी अखबार पढने लग गया। वह लडका कब चला गया पता ही नहीं चला।
कुछ देर के पश्चात् वह गिलास वापस लेने आया तो मैंने हमेशा की तरह अपना पर्स निकालकर उसकी और चाय के पैसे बढ़ाये परंतु उसने चाय के पैसे लेने से मना कर दिया, और कहा बाबूजी ये चाय मेरी तरफ से थी मैं अपनी रोजी में से इसके पैसे कटवा दूंगा।
अब मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं था। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन उसने पैसे नहीं लिये।
आज मैं अपना कार्यालय किसी अन्य स्थान पर चला रहा हूँ परंतु जब भी कभी उस पुरानी जगह पर जाता हूँ वही लडका जो खुद अब एक चाय की दुकान का मालिक है बडी साफ सुथरे तरीके से रहते हुए मुझे अब भी याद करता है। और अब उसके यहाँ जो लडके काम करते हैं उनका पूरा ध्यान भी वही रखता है।
कभी कभी हमारे व्दारा बताई गई छोटी सी बात भी किसी अन्य के जीवन में कितना बडा काम कर सकती है यह इसका एक साक्षात उदाहरण है।