नीमच के अनामिका व सुमित राठौर दीक्षा ले रहे हैं। क्या इभ्या के वयस्क होने के पहले उसको उसके माता पिता के प्रेम से वंचित कर दी जाने वाली दीक्षा संभव है? क्या अपने मातृत्व,पितृत्व रूपी कर्तव्यों को इस प्रकार से अधर में छोड कर दीक्षा लेना उचित है? क्या दीक्षा दिलाने वाले आचार्य ने व सहमति देने वाले परिवार के सदस्यों ने इभ्या की ओर से इस प्रकार की दीक्षा पर भी कभी विचार किया है? क्या सर्व सामान्य जनमानस के मन में उभरते हजारों प्रश्नों पर कोई उत्तर है?
इसके पहले भी कक्षा 12वीं के एक टॉपर बच्चे ने दीक्षा लेने के समाचार पढने को मिले थे। जबकि उसके परिवार के सदस्य पूर्ण सहमत नहीं थे यह भी समाचार पत्रों से ही जानकारी प्राप्त हुई थी।
ऐसे समाचारों को पढ़कर ऐसा लगता है कि *ऐसे युवा जिनको अभी समाज के विकास में अपनी भागीदारी निभानी बाकि है* विशेष कर *इस आयु में* क्या इस प्रकार के निर्णय उचित प्रतीत होते हैं। क्या शिक्षित बच्चों को राष्ट्र की मुख्यधारा में रहते हुए, अपने कर्तव्यों के पालन के स्थान पर ऐसा निर्णय उचित है? ऐसे निर्णयों का विवेचन धार्मिक बनकर नहीं वरन सामान्य मानव होकर करना होगा।
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