अक्सर बडे सबेरे सैर पर जाने का प्रयत्न करता हूँ , रोज एक ही रास्ते पर जाने की अपेक्षा अपने शहर के नये-नये रास्तों पर जाता हूँ ऐसा करने से सभी रास्तों पर होने वाले विभिन्न परिवर्तनों से स्वयं को अपडेट कर लेता हूँ।
इसी क्रम में एक बार मैं सुबह जब सैर के लिये जा रहा था मैंने देखा, चौराहे पर चाय का छोटा ठेला लगाने वाले एक व्यक्ति ने एक बडी तपेली भरकर चाय बनाई उसके ठेले के पास कुछ ग्राहक चाय का इंतजार कर रहे थे। सबको उस गुलाबी ठंड में कब चाय मिलेगी इस बात को ले कर बेसब्री थी ऐसे में उस ठेले वाले ने चाय बनाने के बाद पहली एक गिलास चाय और एक गिलास पानी को सड़क के बीचो-बीच ला कर ढोल दिया। उसके बाद उसने बाकी के गिलासों में चाय भरी और फिर ग्राहकों को देना शुरू कर दिया।
यह दृश्य देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने इसका कारण उससे जानना चाहा तब उसने बताया यह हमारे लिये लिये एक टोटके जैसा है अगर हम पहली एक गिलास चाय सड़क पर ढोल भी देते हैं तो क्या फर्क पड़ता है। मैंने उसे समझाने का प्रयत्न करते हुए कहा - भाई , इसकी जगह पर पहली चाय किसी गरीब को पिला दिया करो। बिना पैसे लिये। कम से कम वो दुआ देगा। इस प्रकार सड़क पर चाय ढोलने से तो वो चाय किसी की भी नहीं रही।
ना बाबुजी वो टोटका है-उसने कहा।
मैंने कहा- कैसा टोटका
हमारी और से भूमि को दिया जाता है-उसने कहा।
मैंने कहा - वो अन्न है वो हमारे अन्धविश्वास के चक्कर में किसी और के पैरों में आता है ऐसा करना ठीक नहीं है ऐसा करने से पुण्य मिलेगा या नहीं ये तो नहीं पता लेकिन पाप जरूर लगेगा। अगर ऐसा करना जरूरी ही है तो कम से कम सड़क के बीचों-बीच चाय को न डालते हुए किसी कोने में डाल दो, वो भी तो भूमि का ही हिस्सा है।
लेकिन उसने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
किसी ने ठीक ही कहा है इस देश में इंसान तो क्या पत्थर भी यहाँ पुजे जाते हैं...........